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सांविधानिक विधि
उच्चतम न्यायालय ने दिव्यांगजनों के अधिकारों को सुदृढ़ किया
« »26-Sep-2023
जावेद आबिदी फाउंडेशन बनाम भारत संघ "मूक बधिर वकील न्यायालय के समक्ष दलीलें पेश कर सकते हैं और कार्यवाही का अनुवाद सांकेतिक भाषा में किया जा सकता है।" भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ |
स्रोतः टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा सांकेतिक भाषा के माध्यम से बधिर वकील की दलीलों की आभासी सुनवाई की अनुमति दी गई और न्यायालयी सुनवाई को सांकेतिक भाषा में अनुवाद करने की अनुमति दी गई।
जावेद आबिदी फाउंडेशन बनाम भारत संघ:
- यह याचिका जावेद आबिदी फाउंडेशन द्वारा दायर की गई थी जिसमें दिव्यांग छात्रों के अधिकारों को ध्यान में रखने के लिये निर्देश देने की मांग की गई थी।
- याचिकाकर्ता ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान दिव्यांग छात्रों के समान अधिकार की मांग कर रहे थे।
- इस मामले पर मूक बधिर वकील सारा सनी को वर्चुअल कोर्ट में बहस करने की इजाजत देने के लिये न्यायालय से अनुमति मांगी थी।
- मूक बधिर वकील की सहायता के लिये भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL), दुभाषिया नियुक्त किया गया।
- न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर अपने कदम के बारे में न्यायालय को अपडेट करने को कहा, जहाँ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि केंद्र सरकार मामले को निपटाने के लिये अंतिम स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- यह मामला वर्ष 2021 से लंबित है, हालाँकि, न्यायालय ने सुनवाई में कहा कि "दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD) राज्य की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक उपाय करने का दायित्व बनाता है कि वास्तव में, दिव्यांग व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम हो सकें।”
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD):
- परिचय:
- यह अधिनियम दिव्यांगों/विकलांगों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये भारत सरकार द्वारा अधिनियमित एक कानून है।
- इस कानून ने विकलांग व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित किया और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCRPD) के साथ इसे संरेखित किया। भारत ने वर्ष 2007 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये थे।
- अधिकार क्षेत्र:
- इस अधिनियम ने दिव्यांगता की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें न केवल शारीरिक दिव्यांगताएँ, बल्कि बौद्धिक और विकासात्मक दिव्यांगताएँ, मानसिक बीमारियाँ और कई दिव्यांगताएँ भी शामिल कीं।
- यह दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को रोकता है और समाज में समान अवसर और पूर्ण भागीदारी के सिद्धांत को बढ़ावा देता है।
- यह अधिनियम दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाकर समानता के सिद्धांत को स्थापित करता है।
- यह शिक्षा, रोज़गार और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में दिव्यांगजनों को अधिकार देने पर केंद्रित है।
- दिव्यांगजनों के लिये सीटों का आरक्षण:
- दिव्यांगजनों के लिये स्थानीय सरकारी निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में कुछ सीटें आरक्षित करता है।
- उदाहरण के लिये - छत्तीसगढ़ ने राज्य पंचायती राज अधिनियम, 1993 में संशोधन करके राज्य भर की सभी पंचायतों में दिव्यांगों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी है।
- दिव्यांगजनों के लिये स्थानीय सरकारी निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में कुछ सीटें आरक्षित करता है।
- राष्ट्रीय और राज्य आयोग:
- इस अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी और शिकायतों का समाधान करने के लिये, यह अधिनियम दिव्यांगजनों के लिये राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय आयोगों की स्थापना करता है।
- दंड:
- शारीरिक और यौन शोषण सहित दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ किये गए अपराधों के लिये दंड निर्धारित करता है।
- अत्याचार के अपराधों के लिये अधिनियम की धारा 92 के तहत सजा एक अवधि के लिये कारावास है जो छह महीने से कम नहीं होगी, जिसे पाँच साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
दिव्यांगजनों के लिये उच्चतम न्यायालय द्वारा उठाया गया एक और बड़ा:
- वर्ष 2022 में, उच्चतम न्यायालय को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट तक दिव्यांगजनों की पहुँच की स्थिति का ऑडिट करने के लिये सूचीबद्ध किया गया था।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने वेबसाइट की भौतिक और कार्यात्मक पहुँच का ऑडिट करने और इसे दिव्यांगों के लिये उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाने के लिये एक समिति का गठन किया, जिसका नाम 'एक्सेसिबिलिटी पर उच्चतम न्यायालय की समिति यानी ‘Supreme Court Committee on Accessibility’ है।
- न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट की अध्यक्षता वाली समिति को एक प्रश्नावली तैयार करने का निर्देश दिया गया है कि वेबसाइट का आकलन करते समय दिव्यांगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है।